संक्षिप्त परिचय
मैं, अरुण तिवारी वर्ष 1994 में राजस्थान, अलवर की संस्था तरुण भारत संघ के काम पर फिल्म बनाने गया था। वहां जलपुरुष श्री राजेन्द्र सिंह के संपर्क ने पानी का कुछ ऐसा महत्व समझाया कि मैने सीधे-सीधे पानी से ही मुलाकात करनी शुरु कर दी । मिलते-गढते-पढ़ते जो कुछ समझ में आया, 18 वर्ष बाद, वर्ष – 2012 से वह सब लिखना शुरु किया। पानी से जुडे़ प्रकृति, समाज तथा राज संबंधी मसले इस लेखन का हिस्सा स्वतः बन गये। मित्रों ने सलाह दी कि जो कुछ लिखा, उसे एक जगह संकलित करो। इस तरह नवंबर, 2015 में पानी-पोस्ट का जन्म हुआ।
पांच प्रबल मत
1. भारत के पुरातन-पारंपरिक ज्ञानतंत्र में वर्तमान वैश्विक समस्याओं के निदान स्वतः निहित हैं।
2. पंचतत्वों के साथ-साथ राज, समाज तथा मौजूदा कालखण्ड को ठीक से समझे बगैर, पानी प्रबंधन की समग्र सोच असंभव है।
3. पानी का सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन वह है, जो परावलंबी न होकर सतत् स्वावलंबी और दीर्घकालिक हो; अर्थात जिसे स्थानीय संसाधन, स्थानीय कौशल, स्थानीय निर्णय, स्थानीय जवाबदेही, स्थानीय व्यवहार, अनुशासन तथा इस आस्था के साथ शुरु व सम्पन्न किया गया हो कि पंचतत्व ही ईश्तत्व हैं।
4. वर्तमान परिस्थितियों में यदि भारत के जलसंकट का टिकाऊ समाधान हासिल करना है, तो समाज को सरकार की ओर ताकना बंद करना होगा; उक्त उल्लिखित आस्था व परिभाषा के अनुसार पंचतत्वों के साथ व्यवहार के अनुशासन तथा अपनी ज़रूरत के पानी का खुद इंतजाम करने को अपनी आदत बनाना आदत बनाना होगा।
5. हिमनद, झरना, नदी, नहर, नाला, झील, समुद्र, मेघ, वर्षा तथा भूजल भंडार भिन्न-भिन्न जल प्रणालियां हैं। इन सभी का एक-दूसरे से गहरा रिश्ता ज़रूर है, किंतु तकनीकी तौर पर ये सभी भिन्न हैं। इनकी विभिन्नता से कभी छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। यह सावधानी रखना, प्रत्येक पानी प्रबंधक के लिए ज़रूरी है।
tag on profile.
by Indian Engineers, Technocrats and Researchers.